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2016 के डिमोनेटाइजेशन से कितनी अलग है इस बार की नोटबंदी

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2016 के डिमोनेटाइजेशन से कितनी अलग है इस बार की नोटबंदी


8 नवंबर 2016 की वो तारीख शायद ही कोई भूल सके. ये वही दिन है जब देश के इतिहास में सबसे बड़ी नोटबंदी का ऐलान किया गया था. खुद पीएम मोदी ने राष्ट्र के नाम संदेश में डिमोनेटाइजेशन की घोषणा करते हुए ये कहा था कि आधी रात से 500 और 1 हजार के नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे.


यह वो आदेश था जिसके बाद देश में उथल पुथल मच गई थी, बैंकों की शाखाओं के सामने लंबी-लंबी कतारें लग गईं थीं. एटीएम खाली हो गए थे और घरों में रखे 500 और 1000 रुपये के नोट का कोई मोल नहीं रह गया था. वक्त गुजरा नए नोट जारी हुए. अब तकरीबन पांच साल बाद एक बार फिर भारतीय रिजर्व बैंक ने नोटबंदी का ऐलान किया है. हालांकि इस बार सिर्फ 2 हजार रुपये के नोट सर्कुलेशन से हटाए जा रहे हैं. लोगों को 30 सितंबर तक का वक्त दिया गया है और ये तय कर दिया गया है कि तब तक नोट लीगल टेंडर माने जाएंगे. आइए समझते हैं कि 2016 में हुए डिमोनेटाइजेशन और आज हुई नोटबंदी में आखिर क्या अंतर है?

2016 में क्यों हुई थी नोटबंदी, क्या पड़ा था असर
2016 में हुई नोटबंदी के बारे अफरा-तफरी मच गई थी. 500 और 1000 के नोट ऐलान के कुछ घंटे बाद ही लीगल टेंडर नहीं रहे थे. एक बार में एक व्यक्ति अधिकतम सिर्फ 4 हजार रुपये ही बदल सकता था.
नोटबंदी का फैसला काला धन खत्म करने के लिए लिया गया था, ताकि जो धन डंप किया गया था वो बाहर निकले. लोगों को नकदी बदलने के लिए सिर्फ 30 दिसंबर 2016 यानी तकरीबन 50 दिन का वक्त दिया गया था.

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से दी गई जानकारी में ये बताया गया था कि नोटबंदी, जाली नोट, आतंक के वित्त पोषण और कर चोरी की घटनाओं को रोकने के लिए बहुत सोच समझकर उठाया गया कदम बताया गया था.
2016 में जब पीएम मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया था इसके पीछे डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देना भी एक मकसद बताया गया था. नोटबंदी के ऐलान के वक्त 17.97 लाख करोड़ रुपये के करेंसी नोट चलन में थे. इसके तकरीबन 15 दिन बाद देश में सिर्फ 9.11 लाख करोड़ के ही करेंसी नोट रह गए थे. जबकि जनवरी में सिर्फ 7.8 लाख करोड़ रुपये के करेंसी नोट रह गए थे.