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लोकसभा 2024: आइडिया ऑफ INDIA के साथ क्या करेगा लेफ्ट?

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लोकसभा 2024: आइडिया ऑफ INDIA के साथ क्या करेगा लेफ्ट?


होना या न होना, यही सवाल है. संभवतः यह विलियम शेक्सपियर के नाटक हेमलेट की सर्वाधिक कोट की गई पंक्तियों में से एक है. साहित्य विश्लेषण कहता है कि जब हेमलेट इसे कोट करता है तो वह जीवन और मृत्यु के बारे में सोच रहा होता है. वह अपने अस्तित्व के बारे में पूछ रहा है कि जीवित रहना बेहतर है या मरना. इस समय कुछ इसी तरह की स्थिति भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के राजनीतिक कार्यकर्ताओं की है. पिछले 12 सालों से राजनीतिक उत्पीड़न झेलने के बाद उनकी पार्टी के सचिव सीताराम येचुरी ने मंगलवार को बेंगलुरु में ममता बनर्जी के साथ मंच साझा किया.


येचुरी का कहना है कि इस समय कोशिश यह सुनिश्चित करने की है कि वोटों का विभाजन कम से कम हो क्योंकि वोट का विभाजन बीजेपी को फायदा पहुंचाता है. यह कोई नई बात नहीं है. साल 2004 में वामपंथियों के पास 61 सीटें थीं, जिनमें से उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवारों को हराकर 57 सीटें जीती थीं. उस समय मनमोहन सिंह की सरकार बनी थी और ये सरकार 10 साल तक चली थी.

लेकिन, सीपीआईएम जैसी पार्टी के लिए विचारधारा और जमीनी हकीकत साथ-साथ खड़ी है. इस समय उनके सामने से दो रोड गुजर रहे हैं हैं, लेकिन क्या उनके नेता जानते हैं कि कौन से रास्ते से जाना होगा?


विचारधारा या हकीकत
सीपीआईएम में रूढ़िवाद और विफलता के बीच दरार अब जगजाहिर है. केरल में सीपीआईएम की लाइन संभवतः पूर्व पार्टी सचिव और विचारक प्रकाश करात के करीब देखी जा रही है, जबकि बंगाल में स्थिति मौजूदा समय में पार्टी सचिव सीताराम येचुरी के करीब मानी जा रही है. केरल में पार्टी कांग्रेस से लड़ती है. बंगाल में टीएमसी से लड़ती है. फिर विचारधारा की बहस आती है और ऐतिहासिक झगड़े भी हैं.

साल 1996 में केरल लॉबी ने बंगाल पार्टी के संरक्षक ज्योति बसु को संयुक्त मोर्चा सरकार का प्रधानमंत्री बनने की अनुमति देने पर आपत्ति व्यक्त की थी. बसु ने इसे ‘ऐतिहासिक भूल’ बताया. 2007 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के लिए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन से समर्थन वापस लेने पर दोनों लॉबी फिर से भिड़ गई थीं. 2016 में बंगाल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ सीट बंटवारे और पार्टी सचिव कौन बनेगा इसे लेकर दोनों लॉबी में दौबारा असहमति दिखाई दी थी. बंगाल इकाई ने पार्टी सचिव उम्मीदवार के रूप में येचुरी का समर्थन किया, जबकि केरल इकाई एसआर पिल्लई को चाहती थी.