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रक्षासूत्र में ब्रह्मा-विष्णु-महेश और गाय का स्वर्ग कनेक्शन, जानिए नेपाल में कैसे मनाया जाता है रक्षाबंधन

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रक्षासूत्र में ब्रह्मा-विष्णु-महेश और गाय का स्वर्ग कनेक्शन, जानिए नेपाल में कैसे मनाया जाता है रक्षाबंधन


Raksha Bandhan Rituals:नेपाल में, रक्षा बंधन को जनाई पूर्णिमा या ऋषितरपानी के रूप में जाना जाता है, और इसमें एक पवित्र धागा समारोह शामिल होता है। यह नेपाल के हिंदू और बौद्ध दोनों द्वारा मनाया जाता है । हिंदू पुरुष अपने सीने पर पहनने वाले धागे (जनाई) को बदलते हैं, जबकि नेपाल के कुछ हिस्सों में लड़कियां और महिलाएं अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं। 
भारत का पड़ोसी देश नेपाल भी रक्षाबंधन मनाता है कि लेकिन यहां की अलग-अलग कम्युनिटी में इसे मनाने का तरीका भी दिलचस्प है. नेपाली ब्राह्मणों और छेत्री कम्युनिटी में इस खास दिन को जनई पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है. इस दिन 6 सूती धागों से जनई को नेपाली पुरुषों को पहनाया जाता है. नेपाल के इतिहास में इसका खास महत्व होता है. ये धागे पवित्रता और सुरक्षा को दर्शाते हैं.
ये धागे क्यों इतने खास होते हैं, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि इन सभी के नाम का कनेक्शन यहां के धर्म और आध्यात्म से जुड़ा है. वहीं यहां की नेवाड़ कम्युनिटी इसे क्वाती पुंही और तराई क्षेत्र के हिन्दू इसे रक्ष्य बंधन के नाम से मनाते हैं. सभी कम्युनिटी में रक्षाबंधन से जुड़े-रीति-रिवाज अलग-अलग हैं. आइए समझते हैं नेपाल में कैसे मनाया जाता है रक्षाबंधन का त्योहार.

रक्षासूत्र में ब्रह्मा-विष्णु-महेश
रक्षाबंधन यानी जनई पूर्णिमा के मौके पर पहना जाने वाला धागा 6 अलग-अलग धागों से बना होता है. इसे दाहिने कंधे से लेकर कमर तक पहनाया जाता है. इसके अंतिम सिरे पर गांठ बांधी जाती है. पुजारी भगवान को मंत्रोंच्चार समर्पित करते हुए इसे बांधता है.इन सभी 6 धागों का अपना महत्व है. इनमें से 3 धागे ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक होते हैं. अन्य तीन धागे ज्ञान, पूजा और कर्म को दर्शाते हैं.

क्यों मनाया जाता है जनई पूर्णिमा?
रक्षासूत्र सूती धागे से बना होता है. इसे पवित्र बंधन के रूप में माना जाता है. नेपाली ब्रह्मणों में इसे उनके जीवन के महत्व के तौर पर देखा जाता है. बच्चे के वयस्क होने पर इसे पहनाया जाता है. इस प्रक्रिया को ब्रतबंध कहते हैं.

मान्यता है कि ईश्वर धागे के रूप में उस इंसान के साथ रहते हैं. इसलिए इसे पवित्र शरीर, आत्मा और मन के लिए बांधा जाता है. कहा जाता है कि यह धागा बुरी चीजों से इंसान की सुरक्षा करता है. हर जनई पूर्णिमा के दिन नेपाली ब्राह्मण और छेत्री समुदाय के लोग इसे बदलकर नया जनई पहनते हैं.

माना जाता है कि जनई पूर्णिमा पर जो भी इंसान इसे पहनता है वो धर्म का महत्व समझने लायक हो चुका है. वो ईश्वर की पूजा अर्चना को समझता है. भारत में इसी प्रक्रिया को जनेऊ या यज्ञाेपवीत संस्कार के नाम से जानते हैं. इसे पहने वाला ब्राह्मण मांस-मछली नहीं खाता. इस प्रक्रिया के एक दिन पहले आंशिक उपवास रखना होता है. उस शख्स को मीट, प्याज और लहसुन से दूरी बनानी होती है.

क्वाति पुंही: गाय दिखाती है स्वर्ग का रास्ता
नेपाल की नेवाड़ कम्युनिटी इसे क्वाति पुंही के तौर पर मनाती है. जनई से इतर इनमें हाथों पर धागा (डोरा) पहनने की परंपरा है. पुरुष सुबह-सुबह नहाकर मंदिर पहुंचते हैं, जहां पुजारी इन्हें डोरा पहनाते हैं.अगले दिन इस धागे को खोलकर गाय को बांधा जाता है. माना जाता है कि इंसान के जीवन का अंत होने के बाद गाय ही स्वर्ग तक का रास्ता दिखाती है. इस मौके पर घरों में तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं.
नेपाल में रक्ष्य बंधन की परंपरा
नेपाल में रक्षा बंधन को रक्ष्य बंधन के नाम जाना जाता है. तराई क्षेत्र के हिन्दू इसे मनाते हैं. इस कम्युनिटी में रक्षाबंधन को वैसे ही मनाया जाता है जैसे भारत में मनाने की परंपरा रही है. बहनें भाइयों को रक्षासूत्र बांधती हैं. भारत की तरह यहां भी बहनें पूजा थाली सजाती हैं और भाई को तिलक लगाने के बाद दाहिने हाथ में राखी बांधती हैं और फूलों की माला पहनाती हैं.