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मणिपुर की हिंसा और वहां की सामूहिक पीड़ा के बजाए पीएम चुटकुले सुनाने में लगे रहे: कुमारी सैलजा

कहा- केंद्र सरकार दूसरे राज्यों के मामले उठाकर मणिपुर की अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती

 
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चंडीगढ़ । अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की राष्ट्रीय महासचिव, पूर्व केन्द्रीय मंत्री, हरियाणा कांग्रेस की पूर्व प्रदेशाध्यक्ष एवं छत्तीसगढ़ की प्रभारी कुमारी सैलजा ने कहा कि मणिपुर को मरहम की ज़रूरत थी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसा करना भी उचित नहीं समझा। केंद्र सरकार मणिपुर मामले की तुलना दूसरे राज्यों में हुई घटनाओं से करती रही, सरकार इस प्रकार की बात करके मणिपुर मामले में अपनी जिम्मेदार से नहीं बच सकती। इस मुद्दे पर जनता सदा जवाब मांगती रहेगी।

मीडिया को जारी एक बयान में कुमारी सैलजा ने कहा है कि विपक्ष बार बार मणिपुर की घटना को लेकर केंद्र से जवाब मांगता रहा पर केंद्र चुप्पी साधे रहा क्यों ? उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से विपक्ष केवल तीन सवालों के जवाब चाहता था लेकिन मोदी को संसद में भाषण देने के लिए मजबूर करने के बावजूद इन सवालों के जवाब प्रधानमंत्री ने नहीं दिए। उन्होंने कहा कि विपक्ष पूछता रहा कि प्रधानमंत्री ने आज तक मणिपुर में जाकर क्यों नहीं देखा, ऐसी क्या जिद है कि मणिपुर में आप नहीं जा सकते। राहुल गांधी वहां पर गए, दूसरे राजनीतिक दलों के लोग गए पर आप वहां क्यों नहीं गए ? आप चाहते तो मणिपुर जाकर वहां के पीड़ितों के जख्मों पर मरहम लगा सकते थे पर ऐसा नहीं किया। उन्होंने कहा कि विपक्ष का दूसरा सवाल यह था कि मणिपुर में शर्मसार करने वाली ऐसी घटना के बावजूद मुख्यमंत्री को क्यों नहीं बर्खास्त किया गया ? क्या राष्ट्रपति शासन लागू नहीं किया जा सकता था। मणिपुर में लगभग उपद्रवी 06 लाख गोलियां, 6 हज़ार हथियार पुलिस थानों से लूट कर ले गए वहीं गोलियां आज लोगों पर बरसाई जा रही है।  

उन्होंने कहा है कि 80 दिन तक प्रधानमंत्री मणिपुर मामले में क्यों चुप्पी साधे रहे। प्रधानमंत्री को स्वयं मणिपुर का दौरा कर शांति और न्याय की गारंटी अपील करनी चाहिए थी वह नहीं हुई। संसद में प्रधानमंत्री के भाषण में लगभग पौने दो घंटे के बाद कुछ मिनट के लिए मणिपुर का हिस्सा आया। उन्होंने कहा कि इससे पूर्व जब संसद में मणिपुर का मामला उठा तो केंद्रीय मंत्री ने इसे गंभीरता से नहीं लिया बल्कि दूसरे राज्यों में हुई घटना की तुलना मणिपुर घटना से करने लगे। मौतों की तुलना नहीं की जा सकती, इस प्रकार इस प्रकार की बाते कर मुद्दा तो घुमा सकती है पर अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती। सदन में मणिपुर की हिंसा और वहां की सामूहिक पीड़ा पर बोलने के बजाए प्रधानमंत्री चुटकुले सुनाने में लगे रहे।